ऑनलाइन कक्षाओं से आख़िर शिक्षकों को क्या-क्या परेशानियाँ हैं?
“पहले टीचर्स के फ़ोन नंबर तक बच्चों की पहुँच बहुत कम होती थी, जो भी बात करनी हो वो स्कूल में होगी, लेकिन अब हमारे नंबर स्टूडेंट्स के साथ-साथ उनके भाई-बहनों तक पहुँच गए हैं. स्टूडेंट्स के दिन-रात फ़ोन आते हैं और कई बार बच्चों के भाई-बहन गुड मॉर्निंग-गुड नाइट मैसेज भी भेजते हैं.”
दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में शिक्षिका संगीता चौधरी ऑनलाइन क्लासें शुरू होने से बदली परिस्थिति के बारे में हमें बताती हैं.
कोरोना महामारी के दौरान बच्चों के स्कूल बंद हैं और सरकारी से लेकर निजी स्कूलों तक, बच्चों की ज़ूम, गूगल मीट और माइक्रोसॉफ्ट टीम्स जैसे ऐप्स के ज़रिये ऑनलाइन क्लासें चल रही हैं जो सिर्फ़ ऑनलाइन क्लासरूम तक सीमित ना रहकर, शिक्षकों की निजी ज़िंदगी तक पहुँच गई हैं.
बच्चों या उनके माता-पिता तक सूचनाएं पहुँचाने के लिए शिक्षकों ने अलग-अलग कक्षाओं के वॉट्सऐप ग्रुप बनाये हुए हैं. लेकिन जिस मोबाइल से बच्चे क्लास लेते हैं या फिर वॉट्सऐप के ज़रिये बात करते हैं, वो उनके माता-पिता या भाई-बहन का होता है.
इसी वजह से शिक्षकों का नंबर बच्चों के अलावा उनके परिवार वालों तक भी पहुँच रहा है.
संगीता चौधरी बताती हैं, “जब से स्कूल शुरू हुए हैं, तब से मेरे पास रात के डेढ़ या दो बजे भी फ़ॉरवर्डेड मैसेज आए हैं कि ‘गुड नाइट, सो जाओ’ या ‘गुड मॉर्निंग’. मुझे पता है कि स्टूडेंट वो मैसेज नहीं करते क्योंकि उनके पास मोबाइल सिर्फ़ क्लास के दौरान होता है. उनके भाई-बहन देखते हैं कि रात को टीचर ऑनलाइन है तो मैसेज कर देते हैं. कई बार डीपी देखते हैं तो उसे लेकर कमेंट कर देते हैं. ये मैसेज बड़ी बात भले ना हों, पर ये डर ज़रूर रहता है कि हमारे नंबर का आगे क्या इस्तेमाल होगा!”
सरकारी स्कूल में एक टीचर सिमरन मलिक कहती हैं कि 'वैसे तो महिलाएं बहुत सोच-समझकर अपना नंबर शेयर करती हैं लेकिन इस बीच हमें सोचने का मौक़ा ही नहीं मिला. लॉकडाउन था तो कोई नया नंबर भी नहीं ख़रीद सकते थे. इसलिए छुट्टियों के दौरान बच्चों और उनके परिवार के साथ नंबर शेयर करना पड़ा.'
ऑनलाइन पढ़ा रहे शिक्षकों के साथ सिर्फ़ यही परेशानी नहीं है, बल्कि पढ़ाई के इस नए तरीक़े ने उनके सामने भी चुनौतियों का एक पिटारा खोल दिया है.
परफ़ॉर्मेंस का दबाव और 24 घंटे का काम
शिक्षकों ने बताया कि उनका काम अब सिर्फ़ पढ़ाने तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि हर बच्चे को क्लास में बुलाना, उनसे असाइंमेंट और बाकी एक्टिविटी करवाना भी है जिस वजह से काम और काम के घंटे, दोनों बढ़ गये हैं.
दिल्ली के एक केंद्रीय विद्यालय में सामाजिक विज्ञान के टीचर विराग गुप्ता छठी से दसवीं क्लास तक के बच्चों को पढ़ाते हैं. रोज़ उन्हें चार क्लास लेनी होती हैं.
वे बताते हैं कि 'एक क्लास में 40 से 50 बच्चे हैं, लेकिन 20-22 बच्चे ही क्लास में आते हैं. अब टीचर की ये ज़िम्मेदारी भी है कि जो बच्चे क्लास में नहीं आये, उन्हें फ़ोन करके पूछे कि आख़िर वजह क्या है. इस काम में दिन के कई घंटे जाते हैं.'
वे कहते हैं, “स्कूल प्रशासन तो यह देखता है कि क्लास में कितने बच्चे आ रहे हैं, कितने बच्चे असाइनमेंट या बाकी एक्टिविटी कर रहे हैं, लेकिन हमारी समस्या ये है कि हम बच्चों को क्लास में लाएं कैसे. बच्चों के पास कई बार कोई कारण नहीं होता. वो बस कह देते हैं कि कल से आयेंगे, पर आते नहीं. कोई और समस्या है - जैसे इंटरनेट, वो भी नहीं बताते.”
विराग के अनुसार, होम वर्क को लेकर भी यही दिक्कत होती है. वॉट्सऐप पर मैसेज बच्चे ने देखा या नहीं, कई बार यह भी पता करना पड़ता है.
ये समस्याएं ज़्यादातर स्कूल टीचर्स की हैं, चाहे वो सरकारी में काम करते हों या प्राइवेट स्कूल में.
किरण शर्मा दिल्ली के एक निजी स्कूल में छठी से दसवीं तक को पढ़ाती हैं. वो एक दिन में चार से पाँच क्लास लेती हैं. उसके बाद स्टूडेंट्स के फ़ोन और मैसेज का जवाब देती हैं. साथ ही अगले दिन की तैयारी भी करती हैं.
किरन कहती हैं, “आप दो-दो मोर्चों पर एक-साथ काम करते हैं. टीचर को स्कूल प्रशासन के संपर्क में भी रहना है और बच्चों के भी. इसलिए उनका एंगेजमेंट और ज़्यादा बढ़ जाता है. बात ये है कि टीचर्स का भी तो स्क्रीन टाइम बढ़ा है.”
वे कहती हैं, “लोग टीचर की नौकरी को सबसे अच्छा (आसान) बताते हैं. बहुत लोग कहते हैं कि दोपहर में फ़्री होकर घर संभाल सकते हैं. लेकिन अब जो हालात हैं, उन्हें कोई देख ले, तो शायद दोबारा विचार करे. क्लासों में 100-200 बच्चे संभालने हैं, घर पर अपने बच्चों का भी ध्यान रखना है.”
शिक्षकों के परफ़ॉर्मेंस पर सिर्फ़ स्कूल ही नहीं बल्कि बच्चों के माता-पिता की भी नज़र होती है.
कई बच्चों के घरवाले उनके साथ बैठे होते हैं. कभी उन्हें टीचर के बोलने का लहजा पसंद नहीं आता (अगर टीचर उनके इलाक़े का नहीं है) या वो बच्चों पर सवाल पूछने के लिए दबाव डालते रहते हैं.
विराग गुप्ता ने बताया, “हम बच्चों के सामने क्लास में सहज होते हैं, हंसी-मजाक, थोड़ी नाराज़गी भी कर लेते हैं लेकिन माता-पिता के सामने ऐसा नहीं कर सकते. आपको लगता है कि वो जज कर रहे हैं. हर बात संभलकर करनी होती है. ये अलग तरह का मानसिक दबाव है.”
ऑनलाइन क्लास - आम क्लास से कितनी अलग?
जिस तरह ऑनलाइन क्लास में बच्चों के पढ़ने का तरीक़ा बदला है उसी तरह शिक्षकों के पढ़ाने का तरीक़ा बदल गया है.
'वर्चुअल क्लास' का ये सेटअप असल क्लास से बिल्कुल अलग है. इसमें क्लास तो चल रही होती है, मगर सामने बच्चे नहीं दिखते. बच्चे क्या कर रहे हैं और कितना समझ रहे हैं, इसका भी कम ही पता चल पाता है. ऐसे में बच्चों की दिलचस्पी बनाये रखना और उनसे संवाद करना, दोनों एक बड़ी चुनौती बन जाते हैं.
विराग गुप्ता बताते हैं, “क्लास में बच्चों के नाम तो दिखते हैं लेकिन सभी के वीडियो ऑन नहीं होते. आपको पता ही नहीं चलता कि कौन क्या कर रहा है. कई बार बच्चे लॉगइन करके मोबाइल पर कुछ और एक्टिविटी करने लगते हैं.”
“सामान्य दिनों में जब लगता था कि बच्चे का ध्यान नहीं है, तो उससे सवाल पूछ लिया या उससे ही रीडिंग करा ली. लेकिन यहाँ हम कैसे पता लगाएं. मैं सवाल भी पूछता हूँ, लेकिन जवाब उन्हीं बच्चों से आता है जो पहले से पढ़ाई को लेकर थोड़े गंभीर हैं.”
बिहार में एक केंद्रीय विद्यालय में हिंदी के टीचर हरीश कुमार ऐसी ही समस्या से दो-चार हो रहे हैं.
इंटरनेट की समस्या
कोरोना काल में इंटरनेट कनेक्शन और मोबाइल ना होना भी एक बड़ी मुश्किल बना है.
शिक्षकों का कहना है कि 'एक घर में तीन बच्चे हैं और मोबाइल है एक, तो उसका इस्तेमाल कौन करेगा? इस वजह से भी बहुत से बच्चे क्लासें मिस करते हैं.'
इंटनरेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (आईएएमएआई) के आंकड़े बताते हैं कि भारत में शहरी क्षेत्रों के मुक़ाबले ग्रामीण इलाक़ों में इंटरनेट की पहुँच लगभग आधी है.
साल 2019 के आंकड़ों के मुताबिक़ भारत में 12 साल से ज़्यादा उम्र के 38 करोड़ 50 लाख इंटरनेट यूज़र हैं. इनमें से 51 प्रतिशत शहरी इलाक़ों में और 27 प्रतिशत ग्रामीण इलाक़ों में मौजूद हैं.
वहीं, पाँच से 11 साल के छह करोड़ 60 लाख बच्चे इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं.
नई तकनीक से जूझते शिक्षक
शिक्षकों के लिए भी ये एक बिल्कुल नया अनुभव है. कुछ शिक्षक बताते हैं कि वो तकनीक को लेकर इतने सहज नहीं थे और अब उनका सारा काम ही तकनीक आधारित हो गया.
बार-बार ऐप भी बदलते रहे हैं. पहले ज़ूम फिर गूगल और अब दिल्ली सरकार ने तो यूट्यूब पर क्लास के लिए भी कहा है.
टीचर्स को पहले ख़ुद इन्हें समझना है और फिर स्टूडेंट्स को समझाना है.
सरकारी स्कूल में राजनीति विज्ञान की शिक्षिका तरुणा कहती हैं कि इस माध्यम में ढलने में थोड़ा वक़्त लगेगा. सरकारी स्तर पर भी ये कोशिश हो रही है कि ऑनलाइन क्लासेस इंटरेक्टिव कैसे हों. ऐसे कुछ प्रयास भी किए गए हैं. ये ज़रूर है कि टीचर्स को बहुत समय देना पड़ रहा है लेकिन सभी को इसमें सामंजस्य बैठाने में समय लगेगा.
लेकिन, विराग गुप्ता इसके लिए ट्रेनिंग की ज़रूरत बताते हैं.
वे कहते हैं, “तकनीक और बच्चों से इंटरेक्शन को लेकर जितना टीचर का संघर्ष है उतना ही बच्चों का भी है. कई बार मैंने बच्चों के माता-पिता को फोन पर समझाया है कि ऑनलाइन क्लास के लिए ऐप कैसे काम करेगा. अचानक से इस नए सिस्टम में डालने और मूल्यांकन करने की बजाए टीचर को भी सीखने का मौका दें और उनकी समस्याएं समझें.”
2 Comments
Gud
ReplyDeleteRight broo .
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